दुई देश नेपाल र भारतको सिमा सम्बन्धि बिबाद बढिरहेको बेला युवा माधव प्रसाद पान्डेयले हिन्दी भाषामै कविता मार्फत यसरी प्रस्तुत भएका छन।
कविताको शीर्षक: अभागा पिएम
नारदीय आकाशवाणी की बौखलाहट
हर किश्शोमे देखता हूॅ,धृतराष्ट्रिय
जीन्।
शक्तिके मदमे विलखती सत्यता,
सुदूर क्षितीज की कारुणिक पुकार,
न जाने क्या होगा!अभागा पिएम...।
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आखिर हस्तिनापुर की मिट्टी है,
इन्द्रप्रस्थ भी कही दूर नही,
गांगेय विवश है आज,
कौंतेय ओर भावुक इशारा,
मिट्टीके प्रति इतनी वफादारी,
क्यो रे अभागा पिएम..........।
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बेच दीया इमान रोटी पानी की
फिकर
भूल गये अतीत किस परेसानी मे,
वे भी तो पांच थे,परं कृष्ण साथ थे
क्या जाता है बजादो शंख!
खोनेको है क्या?
हिमालयकी सौगन्ध!सोचता है क्या ,
अभागा पिएम............।
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मौत भी एक सान है,क्या इतिहास पर गुमान है,
शक्ति तो दिखाई वीरोंने,चाल चल गये जल्लाद,
न जाने क्या स्वार्थ था खुन था या पानी,
कदम मुडते गये चिर हरण होता रहा
इशारे समझ ,क्या सोचता है!
अभागा पिएम**********।
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सत्रहहजारी रत्नाकर की फौज,
झापा हो या बिरगंज,
क्य किया था दुस्साहस?
ऊन अकूत विधवाओं का सिन्दूर मिटते,
अवोध वालकों साया शिरसे उठाते
आभास नही था ?
दो भीषण पहाडों बीच दबे पत्थर की दशा!
कुछ कर सोचता क्या है!
अभागा पिएम...........।